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Showing posts from September, 2022

प्रभात रंजन की किताब ‘एक्स वाई का ज़ेड’ पर यतीश कुमार की समीक्षा

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प्रभात रंजन की किताब ‘ एक्स वाई का ज़ेड ’  पर यतीश कुमार की समीक्षा किस्सगोई एक कला है और अगर वो संस्मरणात्मक कलेवर लिए हो तो और रोचक हो उठता है। पहली कहानी ने मुझे अपने एक दूर के रिश्तेदार की याद दिला दी। वो कहती थीं कि सिगरेट पीने वाला लड़का मुझे ज़्यादा आकर्षक लगता है। समय के साथ सपनों के रंग बदलते हैं। सपनों में भी रूपक झिलमिलाते हैं , जिनकी शक्लें कभी डनहिल तो कभी अडिडास से मिलती हैं। सपनों की आपसी होड़ की कहानी है यह। बांबे 405 माइल्स को पढ़ने का मन कर गया। गानों से बुना संस्मरण आपको बहुत भावुक कर देता है। आप अपनी पुरानी दुनिया में टहल आते हैं। कैसेट वाले दिन सच बहुत रूमानी थे। हमारी यादों में उन गानों का विशेष स्थान है जब रुमान परवान पर रहता था। प्रभात की सरस-सरल भाषा उस परवान की याद दिलाती है जो , आपके परवाने वाले रूप को फ़्लैश की तरह झलकाता है। आप तदुपरांत झील के पानी की तरह लहराते हैं , न ज़्यादा न कम। लेखनी का असली मतलब भी यही है कि आपकी संवेदना को तरंगित-कंपित कर दे और आप उस एहसास से तर-बतर ख़ुद में खो जाएँ , खुद के संस्मरण में गुम हो जाएँ। प्रेम में ग़ज़ल कटेलिस्ट

सुजाता की किताब ‘एक बटा दो’ पर यतीश कुमार की काव्यात्मक समीक्षा

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  सुजाता की किताब  ‘ एक बटा दो ’  पर यतीश कुमार की काव्यात्मक समीक्षा बिना किसी भी पूर्वाग्रह के मैंने इस किताब को छुआ। शुरुआती पंक्तियों में ही लगा कि गद्य नहीं है । सोचने लगा , सुजाता कविता क्यों नहीं लिखतीं। ऐसा मैंने रणेन्द्र का गद्य पढ़ते हुए भी महसूस किया था। सिरहाने तंग सी गुजरती रात में मैंने कोई दो तीन-पन्ना ही पढ़ा होगा कि नींद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। इसे आधे रास्ते छोड़े गए शब्दों की ही ध्वनि कहा जा सकता है , जिसने अलार्म की तरह मुझे तीन बजे सुबह जगा दिया। वो दो-तीन पन्ने जो पेचीदगी भरे माथे से पढ़ा था , वो सब अनजान लगा और जब दोबारा पढ़ा तब पंक्तियों ने पंखुड़ियाँ खोली और एक तेज इत्र सी खुशबू ने मुझे घेर लिया। अब मैं शायद किसी उड़ने वाली कालीन पर आराम फरमाते हुए पढ़ रहा हूँ और महसूस कर रहा हूँ कि मेरे जुल्फ जो लंबे नहीं है फिर भी लहरा रहे हैं , जैसे ड्राइविंग सीट पर बैठा हूँ और खिड़की खुली है। भीतर कुछ गुनगुनाहट बुलबुला रही है । उपन्यास खुद से बातचीत का ढर्रा पकड़े आगे बढ़ता है और हम   इस गुफ्तगू का हिस्सा बनते चले   जाते हैं। एक सामान्य घर की तीन बेटियों के बीच सबसे छोटी सम