कृष्णनाथ रचित यात्रा-वृत्तांत ‘पृथ्वी परिक्रमा’ पर यतीश कुमार की काव्यात्मक समीक्षा
कृष्णनाथ रचित यात्रा-वृत्तांत ‘पृथ्वी परिक्रमा’ पर यतीश कुमार की काव्यात्मक समीक्षा
1.
पश्चिमी हवा
है और यात्रा भी
पर ध्येय तो
पूरबी है और जिज्ञासा भी
सहज निसर्ग
आनंद की तलाश
बाह्य
परिवर्तनों को बूझने का लक्ष्य
किसिम-किसिम
के कोलोन
पर सुगंध
कहीं नहीं
हर देश का
मिज़ाज अलहदा
घड़ी के हाथों
की तरह
समय को
हिस्सों में बाँटता एक सूरज
तृषित आदमी
से ज्यादा
उसकी पहचान
बेकल है
जानना, पहचानने के
पीछे दुबक गया है
निखालिस-निसर्गता
से गुज़रते हुए
चोला उतार रख
देता हूँ
उन्हें देखना
मानो निर्वसन
बच्चे को देखना हो
नक़ाब हटाने
से आसान
नाम हटाना हो
जाए
तो रूप को
स्वरूप की चिंता नहीं रहती
2.
सत्यकाम ने
संगठन बनाया
संगठन ने
वजूद मिटाया
अब सिर्फ ‛काम‘ बच गया
स्वयं की खोज
जारी है
धर्मों में
ध्यान की संगत अलग
प्राण की एक
आँख एक आसमाँ
अनेक
ईसाई होना
‘ईसा’ होना नहीं होता
नदी की नद
यात्रा में
अभ्र निरभ्र
हो चला है
कल-कल
स्वरांश
स्वरांत पर
ठहर गया है
छाया पेड़ से
विरक्त है
और काया मन
से विलग
छिलका उतारना
है
या गुठली अलग
करनी है
विडंबना
ऐसी-ऐसी
कि भंते को
भी समझ नहीं आ रही
उपोसथ हो या
धर्म
पुराना हमेशा
से नए की पृष्ठभूमि रहा है
3.
पूरब ग़रीब है
पर नगदी को
पकड़े है
पश्चिम
उधारवादी है
किस्तों पर
इसकी धुरी है
पूरब में सब
कुछ ‘हम’ है
पश्चिम में
जो कुछ है ‘मैं’ हूँ
पूरब में
वर्जना की अति है
पश्चिम में
खुलेपन की
स्पर्श खुले
ख़ज़ाने सा सहज
और गुह्य की
खोज में सब परेशान
पूरबी गुह्य
का आकर्षण
वासना के वेग
सा क्षणिक नहीं
गुह्य को
तोपना वर्जना की अति है
वेग को कसना
ही यात्रा की मंज़िल
गाँधी की
बातें अभी राख से ढकी हैं
चिंगारी को
अमरत्व प्रदान है
राख को नहीं
कभी भी आग बन
सकती है
इतिहास धधका, थंका जली
हिन्दुस्तान
के असली संग्रहालय ध्वस्त हुए
चीन ने
इतिहास को रौंदा
जिसकी चिन्दी
लंदन, अमेरिका
समेटते फिर रहे हैं
भारत के हाथ
सिर्फ दलाई लामा लगे
(थंका-तिब्बत की चित्रकला जिसके माध्यम से बौद्ध धर्म,संस्कृति एवं दार्शनिक मूल्यों को अभिव्यक्त किया जाता रहा है।)
4.
ज़िंदगी
ट्रैफिक जाम में फँसी
उसी की गति
से चल रही है
एक संगीतज्ञ
टोपी उतार कर
सिक्कों की
खनक से बे-ख़बर
संगीत सुना
रहा है
टप-टप सिक्के
टोपी में गिर रहे हैं
छत और फर्श
के बीच
सांसत में
फँसा आदमी
खुला आकाश
ढूँढता है
फुटपाथ पर
बारिश में भींगते लोग
स्मित बारिश
को अपने घर नहीं ला पा रहे
आत्मसमर्पण
के पहले
समर्पण का भी
एक चित्त होता है
तंत्र, साधना की
रोपनी
बोधिचित्त की
ज़मीन खोजती है
परे देखने से
सही रूप दिखता है
चपटी धरती को
गोल देखने के लिए
इससे दूर
जाना होता है
शरीर से लगी
कोई वस्तु
हट जाने पर
भी
एहसास अपने
भर का छोड़ जाती है
छूटने के
एहसास को मिटाना
निर्वाण की
ओर उठा कदम है
उत्कंठा का
रिहाई में साथ ज़रूरी नहीं
5.
ईश्वर और
सृष्टि द्वैत है
प्रेम से
पाटा जा सकता है
धर्म, युद्ध के
विरुद्ध है
द्वय का
अद्वय हो जाना प्रेम है
पर प्रेम को
बम से उड़ाया
जा रहा है
काफी गहरे
खंदक है और खंदकों में
गलता हुआ
प्रेम है बचा-खुचा
और चारों तरफ
ईंटें पत्थर
सरिया टूटे हुए
स्त्री-पुरुष
द्वैत हैं
समता कल्प है
पाटने के लिए
बढ़ो
तो कल्प एक
अंगुल ऊपर खिसक जाता है
कल्प और कथनी
ऊपर
करनी-रहनी
नीचे
कथनी, करनी से
एक अंगुल और
ऊपर
कृतज्ञता और
कृतघ्नता के अनुपात का अंतर है
दिशाओं में
कुछ चीजें
मोबिल की तरह होती हैं
ईंधन के साथ
चाहिए होता है गाड़ी चलाने के लिए
6.
शांति की भूख
जब भी लगती है
चीज़ें फ़ीकी
लगने लगती हैं
प्रज्ञा के
बिना उपाय अंधा
और उपाय के
बिना प्रज्ञा बाँझ
दोनों के
बिना सिद्धि मुश्किल
महान शक्ति
है पर दिल खुला नहीं
ग्रहणशील नहीं
वर्जनशील है
शक्तियां
रोटी के बजाय
बम पर पैसा
लगा रही हैं
पश्चिम की यह
हवा
पूरब तक आ
गयी है
बच्चे पिता
के साथ नहीं जाते
सिंगल मदर की
संख्या बढ़ती जा रही है
बच्चे बड़े
होते हैं निकल पड़ते हैं
अंततः माँ सच
में सिंगल हो जाती है
7.
सुगंध की कमी
है
खुले मन का
अभाव है
दिल और
पैराशूट का पूरा खुलना जरूरी है
अन्यथा अंत
निश्चित है
स्पर्श जितना
उकसाता है उतना और कुछ नहीं
संग जितना
शांत करता है उतना और कुछ नहीं
आकर्षण अनादि
है
पीछे दौड़ने
का अंत नहीं
तन बँधता है
उसकी सीमा है
मन बँधता
नहीं
उसकी सीमा
नहीं होती
उद्दीपक, उन्मुक्त, आधुनिक
पर मुक्त
नहीं, तृष्णा-त्यागी
विरले
बोधि की कौंध
वरण नहीं होती
परिनिर्वाण
क्षितिज में नहीं दिखता
भीतर होता है
और भीतर
झांकना सबसे दुर्लभ
8.
विद्या-रसिक
नहीं मिलते,
विद्या-व्यसनी
भी नहीं
विद्या-धर्म
व्यवसायी मिलते हैं
स्वार्थवश
हैं परमार्थ वश नहीं
आख़िरयत का
धंधा अगोरख है
एक वियतनामी
बुद्ध प्रतिमा
अमेरिका के
एक हिस्से में
अकेले
मुस्कुरा रही है
वहाँ किसी ने
पूछा
असली काम
क्या है
जवाब मिला
“ख़ुद को बचाये रखना”
लॉस एंजेलिस
ने एशिया के बौद्ध को विस्तार दिया
पचास से
ज्यादा बौद्ध विहार हैं यहाँ
विडंबना है
कि कसीनो भी सबसे ज्यादा यहीं है
09.
भाषा और
ईश्वर
हर थोड़ी दूर
पर स्वरूप बदलते हुए
अपनी केंचुली
छोड़ कर
नए ढब में
मिलते जाते है
एक जगह जहाँ पुजारी
मिनिस्टर कहलाते हैं
वहीं दूसरी
जगह बौद्ध विहार बुद्धिस्ट चर्च
प्रश्नों को
न्योतना है,
उत्तरों को
सहेजना है,
अपभ्रंशों को
बरजना है
यात्राएँ
बटोरने और बुहारने का अंतर सिखलाती हैं
शोर में जब
जीना सुकर हो जाए
तो सनक पैदा
होती है
पश्चिमी सनक
पूरबी मुँह बाए है
10.
अध्यात्म, दर्शन, तंत्र, रहस्यवाद, ज्योतिष,
ये सब हाथ की
लकीरों जैसी
एक दूसरे को
काटते हुए गुजरते हैं
हम हैं कि उन
लकीरों पर चलते-चलते
कब ट्रैक बदल
लेते हैं
खुद को भी
पता नहीं चलता
सबसे ज्यादा
नक्शा भटकाता है
चाहे हाथ का
ही क्यों न हो
हर आदम में
एक वहशी रूपा है
कुंती की तरह
आमंत्रण का आह्वान
चुपचाप लिए
कोई घूमती है
और जब सूरज
प्रकट हो जाये तो चीखती है
किसिम-किसिम
के धर्म में
शांति की
बिक्री जारी है
पुरबिया
महात्माओं की मंडली है
बाजार भाव
घट-बढ़ रहा है
पश्चिम का
ज्ञान-विज्ञान
पूरब के
योग-तंत्र से
संतुलित रखने
का चक्र क़ायम है
11.
शहर बदलता
रहता है,
घर टूटते
रहते हैं
सिवानें नहीं
बदलती
वहाँ तो
हमेशा घर बनते रहते हैं
चाँद पर आदमी
भेज सकते हैं
ज़मीन पर आदमी
को बचा नहीं सकते
बाह्य के लिए
सब कुछ
अंतस के लिए
कुछ भी नहीं
समृद्धि से
ऊबकर
शांति की ख़ोज
आंतरिक शांति
के लिए भौतिक प्रगति
हर देश में
संभव नहीं
गूँज और मौन
के अंतराल
एक कम्प
भौरों की तरह गुज़र गया
मृदु, मंद
ममस्पर्शी मंजुश्री
लावण्य में
घुल गयी
और इधर
शून्यता पर शोध जारी है
भव के अंदर
भव बनाना
और फिर तोड़ना
भी
बाँस-बेंत का
फूलना
नष्ट होना
होता है
मन की संकरी
गलियों, बाजारों और
चौराहों पर
शब्दों, रंगों और
सुगंधों की
हल्की-हल्की
बारिश होती रहती है
और इधर
शून्यता पर शोध जारी है
भव के अंदर
भव बनाना
और फिर तोड़ना
भी
बाँस-बेंत का
फूलना
नष्ट होना
होता है
12.
नई पीढ़ी का
अपना राग
अलग चाल-ढाल
शादी के लिए
मंदिर ठीक है
और धर्म
प्रश्न के घेरे में
हर परिवार
चिह्नित है
उनका खुद का
चिह्न है
चिह्न का
पताका छिन्न है पर परिवार नहीं
जापान में
अभी भी कुछ बचा है
इस देश में
बौद्ध जागृत हैं
और
भ्रष्टाचार चोटिल
और जो ऐसा
करते हैं
वो आत्महत्या
वरण करते हैं
अगर शाकाहारी
शांत होते हैं
तो जापानी
इतने शांत कैसे ?
दौड़ यहाँ से
बहुत दूर है
उन्माद की
भभक
कंपन जैसी
सुनाई पड़ती है
संस्कृति ने
यहाँ घर बनाया है
13.
हर विदाई एक
मृत्यु है
राग-चरित शेष
है
करकता है
दरकता है
पर एक छोर से
बंधा ही रहता है
गज़ब का यंत्र
है देह
थकती है फिर
ताज़ी हो जाती है
रूप बदल लेती
है
शव दफनाए और
जलाए भी जाते हैं
समग्र दृष्टि
का दावा नक़ली है
कम्युनिज्म और
बुद्धिज्म (बौद्ध) में
समन्वय
समझौता संभव नहीं
पानी-हवा और
आकाश को थामे
पहाड़ की
बाहें कुतरी जा रही हैं
इमारतें कहाँ
हवा को
अपनी बाहों
पर सुला पाएगी
14.
कौम का
वस्त्र
शिक्षा के
रास्ते में बदलता है
दो रसा संसार, अंदर भी बाहर
भी
रस्सा-कस्सी
जारी है
बोर्ड पर जो
लिख कर
चान पढ़ाया जा
रहा है
उसे मिटा
देता हूँ
कहता हूँ यह
ध्यान है
थाई आधुनिक
बौद्ध हैं
तंद्रा और
निद्रा के बीच
अब चित्त
प्रधान और बाह्य प्रधान का चुनाव है
बुद्ध की
पद-छाप पर पाँव रखते-रखते
पृथ्वी परिक्रमा
अब अंतिम पड़ाव पर है
( चान-चीन
में ध्यान का एक रूप )
15.
अर्वाचीन से
प्राचीन की ओर जाना
सीखने के
लक्षण हैं
अपभ्रंश से
कैसे निकलें
बौद्ध के
अपभ्रंश की परिक्रमा है
हर देश में
ध्वनि, थाप और धाप
का अंतर महसूसते हुए
उभरती
आशंकाओं को बरजता हूँ
परम्परा का
संशोधन जारी है
शांति में भी
उमस है,
डर है बाहर
भी
और भीतर भी
विकिरण ज्ञान
पुंज छिटक गया है
आँखे मिचिया
रही हैं
दोबारा से
इन्हें समेटने
किसी बुद्ध
को आना होगा
एक क्रांति
खुद के घटने के इंतज़ार में है
बस प्रार्थना
करता हूँ
“शाक्य मुनि”
शांति कायम रखें...
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