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Showing posts from January, 2024

वरिष्ठ कथाकार उदय प्रकाश के कहानी संग्रह ‘अन्तिम नीबू’ पर यतीश कुमार की समीक्षा

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उदय प्रकाश की कहानियाँ उतार चढ़ाव का संतुलन जानती हैं। इस संतुलन के साथ ही इन कहानियों में दर्द की बेइंतहायी ऐसी है कि ख़त्म होने का नाम नहीं लेती। ' तिरिछ ' हो या ' मोहनदास ' या फिर ' और अंत में प्रार्थना ' इन सभी कहानियों में अगर कुछ समानता है , तो दर्द की असीमित बढ़ती गहराई का। इस संग्रह की पहली कहानी पढ़ते ही लगा , उदय जी ने अपनी लेखनी के तेवर में कुछ तो बदलाव किया है। यहाँ मसला रंग का है , कटाक्ष का है , धर्म और आडंबर में निहित विरोधाभास का है पर जैसे ही आगे बढ़ते हैं उदय प्रकाश अपने पुराने रंग में पूरी तरह वापस मिलते हैं। ' रुक्कू’ इसकी मिसाल है। किरदार समाज के भीतर रह रहे लोगों के मुखौटे पहन कर कहानी में प्रवेश करता है। ' अनावरण’ कहानी का किरदार दुबेरा भी ऐसा ही है पर ऐसे किरदार को स्टेशन से उठा कर कहानी में सेट करना कोई आम कलाकारी का काम नहीं। इसके लिए जीवन के इस क्षण को उसकी नज़र से जीने की ज़रूरत भी है जो उदय प्रकाश जैसे लेखक ही कर सकते हैं। कहानी में बारीकी ऐसी की पान के पीक को साफ़ करने के लिए चुना लगाने का विवरण तक दर्ज है। लेखक बच्चे

वरिष्ठ लेखिका गरिमा श्रीवास्तव के उपन्यास 'आउशवित्ज़- एक प्रेम कथा' पर यतीश कुमार की समीक्षा

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दूसरों को सँभालने से मुश्किल होता है ख़ुद को सँभालना और इसी के साथ दूसरों को बचाने में हम ख़ुद को बचा लेते हैं। ऐसे संदेश निहित उपन्यास में प्रेम के साथ त्रासदी की उघड़ी बखिया मिलेगी आपको। गंधक के सोते-सा दर्द का खदबदाना मिलेगा। लेखिका ने इतिहास में जाकर विस्मृत होते ज़ख्मों को उचित प्रश्नों में बदलने की सफल कोशिश की है जहाँ दो अलग-अलग देशों के अलग-अलग काल के बावजूद घटित दर्द एक-सा ही रह गया है। आत्मा में दागे हुए पंजे की छाप एक-सी ही है , मन का हनन एक सा ही है और जहाँ अंततः धर्म , नस्ल और पुरुषत्व का ही डंका बजता दिखा है। स्त्रियाँ   सबसे आसान निशाना बनायी जाती हैं , चाहे बांग्लादेश हो या आउशवित्ज़ , कहीं कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। असल में यह उपन्यास युद्ध के दौरान अमानवीय शोषण के शिकार और साक्षी रहे लोगों की कहानी कहते हुए विश्व की परिघटनाओं को सीधे रचनात्मक साहित्य के द्वारा हिंदी भाषा और हिंदी समाज में जोड़ देता है। कथ्य में स्मृति की खुरंड उखड़ती रहती है बार-बार , जो ज़ख़्म को ताज़ा कर देती है। विज्ञान और समाज-विज्ञान के बीच रीत बनकर बीत जाती है प्रेम कहानी , जहाँ स्वाभिमान का आधिक