वरिष्ठ कथाकार उदय प्रकाश के कहानी संग्रह ‘अन्तिम नीबू’ पर यतीश कुमार की समीक्षा

उदय प्रकाश की कहानियाँ उतार चढ़ाव का संतुलन जानती हैं। इस संतुलन के साथ ही इन कहानियों में दर्द की बेइंतहायी ऐसी है कि ख़त्म होने का नाम नहीं लेती। ' तिरिछ ' हो या ' मोहनदास ' या फिर ' और अंत में प्रार्थना ' इन सभी कहानियों में अगर कुछ समानता है , तो दर्द की असीमित बढ़ती गहराई का। इस संग्रह की पहली कहानी पढ़ते ही लगा , उदय जी ने अपनी लेखनी के तेवर में कुछ तो बदलाव किया है। यहाँ मसला रंग का है , कटाक्ष का है , धर्म और आडंबर में निहित विरोधाभास का है पर जैसे ही आगे बढ़ते हैं उदय प्रकाश अपने पुराने रंग में पूरी तरह वापस मिलते हैं। ' रुक्कू’ इसकी मिसाल है। किरदार समाज के भीतर रह रहे लोगों के मुखौटे पहन कर कहानी में प्रवेश करता है। ' अनावरण’ कहानी का किरदार दुबेरा भी ऐसा ही है पर ऐसे किरदार को स्टेशन से उठा कर कहानी में सेट करना कोई आम कलाकारी का काम नहीं। इसके लिए जीवन के इस क्षण को उसकी नज़र से जीने की ज़रूरत भी है जो उदय प्रकाश जैसे लेखक ही कर सकते हैं। कहानी में बारीकी ऐसी की पान के पीक को साफ़ करने के लिए चुना लगाने का विवरण तक दर्ज है। लेखक बच्चे ...