काव्य संग्रह 'अन्तस की खुरचन' पर दीपक मिश्र की समीक्षा


बहुत पहले कहीं पढ़ा था- आप मंद बहती समीर को तो नजर अंदाज कर सकते हैं, लेकिन प्रचंड वेग से बहते तूफ़ान को नहीं। यतीश कुमार का हिंदी साहित्यिक मंच पर उदय या कहें आगाज़ कुछ इसी अंदाज में हुआ है, Veni Vidi vici ( I came, I saw, I conquered) । कहना चाहिए, यह एक नैसर्गिक कवि का आगमन है। हिंदी साहित्य के आकाश में, उन्होंने बहुचर्चित काव्यात्मक समीक्षा का भी न सिर्फ अन्वेषण किया है, वरन उसे एक नई पहचान भी दी है। उनकी सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह अन्तस की खुरचन ने न सिर्फ एक जोरदार दस्तक दी है, अपितु अपने निहायत नए अंदाज-ए-बयां से, नवाचार से और भाषिक नवीनता से हिंदी काव्य जगत को अप्रत्याशित रूप से   स्पंदित किया है।

एक जीवंत काव्य रचना के लिए कहीं न कहीं कवि की जिम्मेदार वैचारिक प्रतिबद्धता भी अनुस्यूत होती है। इस दृष्टि से कवि यतीश न सिर्फ सजग हैं, अपितु पूर्ण रूप से मुखर भी हैं। संग्रह की कविता “आज” इस दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण और कवि के लोकल को स्पष्ट करने के लिए उधृत की जा सकती है-

“गुलाब के कांटे
अब चुभते नहीं
आघात करते हैं
कमल सूरज को देख कर नहीं खिलता

इन पंक्तियों में विन्यस्त तंज को न सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बल्कि ये कवि की वैचारिकता को भी उसी शिद्दत से उभरती हैं । संग्रह को पढ़ना न सिर्फ पाठक को एक विरल अनुभव से भर देता है, बल्कि भाषिक सजगता और दृश्यों के चाक्षुष संयोजन से ज्यादा जो चीज ध्यान आकर्षित करती वह है बिंबों की बहुलता और नव्यता। एजरा पाउंड के अनुसार, बिंब वह है जो किसी बौद्धिक तथा भावात्मक संश्लेषण को समय के किसी एक बिंदु पर संभव करता है। कवि बेहद तरलता से अनायास इतने चाक्षुष बिंबों का इस्तेमाल करता है कि दंग हो जाना पड़ता है। मिसाल के रूप में यह कविता देखें “संक्रमित समय,

“मधुमक्खियों की तरह / भिनभिनाता हुआ दुःख / शहद के सुख को / विस्मृत कर दे रहा है”

यह पूरी कविता ही इतने अद्भुत और नए बिंबों से सम्पृक्त है कि बारहा केदार नाथ सिंह की याद आ जाती है। सनद रहे इस बिंबों का उपयोग सायास या जबरदस्ती नहीं है, बल्कि ये जल में चीनी की भांति घुले-मिले हैं। एक और कविता “भूख का जिक्र भी इस क्रम में किया जा सकता है। “भूख करवट यूं बदलती है / मानो जलती लकड़ी / आंच ठीक करने के लिए / सरकाई जा रही हो।”

सी. डी. लेविस ने एक जगह लिखा है “काव्यात्मक बिंब एक संवेदनात्मक चित्र है जो एक सीमा तक अलंकृत रूपात्मक, भावनात्मक और संवेगात्मक होता है। यतीश कुमार की कविताओं में यह परिभाषा पूरे सान्द्र रूप में फलित होती है । वे बिंबों के माध्यम से जीवन के अनुभव से अर्जित संवेदनात्मक ज्ञान को कविता में पिरोते हैं। इस खूबसूरती और खिलंदड़पन से जो अपनी नव्यता से कि; कविता आपको गहराई में लेकर जाती है ।

काव्य संग्रह की प्रस्तावना में प्रसिद्ध कवि समीक्षक अष्टभुजा शुक्ल लिखते हैं “कवि की इन कविताओं  में बहधा किसी चित्रकार का डार्क रूम नजर आता है , जहां चित्रकार अपने नेगेटिव को अपने हाथों से धो कर दुनिया के उजाले में उन्हें सामने लाता है। इसलिए उनके यहाँ बिंबों या रंगों की भाषा में स्याह पक्ष सबसे ज्यादा चमकता है।” डिजिटल युग में डार्क रूम की अवधारणा बेशक समाचीन न हो लेकिन कवि यतीश की काव्य संसार का रूप नि:संदेह स्याह है, जिन्दगी की विद्रूपता और विसंगतियों के रंग के मानिंद ।

संग्रह की तमाम कविताएँ कवि के “गेज को परिलक्षित और रेखांकित करती है।विडंबना-1, विडंबना-2 एवं विडंबना-3 को इस दृष्टि से खास कर उद्धृत किया जा सकता है। ये तीनों कविता, आपको धूमिल की याद शिद्दत से दिलाती हैं। बल्कि यह कहना कि कवि धूमिल से गहरे में प्रभावित हैx, अतिशयोक्ति  नहीं होगा। जिस तरह से जीवन मूल्यों और आधारभूत सिद्धांतों का सतत क्षरण हो रहा है, कवि सचेत उसके प्रतिरोध में खड़ा है। “इस कठिन समय में / सबसे मुश्किल है / चुपचाप जिंदा रहना / और दबाव में सृजन करना।” इन पंक्तियों में पाठक एक सिनिकल किस्म के विडंबना-बोध को महसूस करता है, लेकिन यह युगीन है, कवि का निजी हासिल नहीं। वैसे समय में जब ईमानदारी बेवकूफी का पर्याय बना दी गई है, जीना बहुत कठिन हो जाता है ।

कवि आगे लिखता है,नाराजगी ने मेरे चेहरे पर / इतनी कहानियां लिखी है / कि मेरी अपनी कहानी / भीड़ में स्वयं को ढूंढ रही है।” यहाँ एक साथ कवि परिस्थितिज्न्य क्रोध को व्यष्टि से समष्टि का आयाम दे रहा है। कवि अन्यत्र लिखता है “ अनिश्चय और भय के / सहजता से परेशां हूँ।” दरअसल यह समय की विडंबना है जहाँ एक ईमानदार व्यक्ति को किंकर्तव्यविमूढ़ बना देती है ।

इन तीनों कविताओं में कवि के कवि-कर्म जो तथाकथित सच के खोखलेपन की विडंबना से सृजित हुआ है को रेखांकित किया जा सकता है। अंतरलयता और बुनावट की दृष्टि से निश्चय ही इन्हें परिमार्जित करने की आवश्यकता महसूस होती है, लेकिन कवि के “गेज” को सम्पूर्ण रूप से उद्घाटित करती हैं। यह अनायास नहीं है जब कवि लिखता है “ अपने और अजनबी (समय!) के बीच / पहाड़ों पर पसरा अँधेरा हूँ। ये विडंबनाएं समय की हैं और घुट-घुट कर जीते एक ईमानदार, संवेदनशील मनुष्य की ।

यतीश कुमार की अधिकांश कविताएँ गहरे ध्यान से नि:सृत हुई हैं ;जहाँ शब्दों में पसरे मौन को आप  महसूस कर सकते हैं और जिनमें समष्टि की मुक्ति की गहनतम अभीप्सा है। उदाहरण के तौर पर “पूर्ण विराम और “यंत्रणा का विलाप कविता को ले सकते हैं। कवि लिखता है “बुद्ध के घुंघराले लटों जैसा /अँधेरे को केंद्र में दबोचे / झांकता सूरज पीछे से दिखता है / और चांदना की लालिमा / आतुर है मुस्कान लिए / फ़ैल जाने को।” अपने निहितार्थ में ये बेहद अलहदा काव्यांश है जो न सिर्फ प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को निरुपित करतीं है ,अपितु दार्शनिक रूप से बुद्ध के दर्शन का भी संधान करती है “ व्यष्टि से समष्टि की ओर”।

“यंत्रणा का विलाप में कवि लिखता है “अतृप्ति का सोता लिये / दर-ब-दर भटकते लोग / सुख की तलाश में /अपने अपने दुखों को नत्थी कर रहे हैं / खून पसीना एक साथ बह रहे हैं।” कविता एक ठंठी , किफायती और बेलौस भाषा में उस दुःख का बयाँ करती है जो देह, मन और आत्मा के स्तर पर घटित अतृप्ति से उपजती है और जो मनुष्य के परम सत्य की खोज में सन्निहित है । कविता का उत्स है “इस सबके बीच / अपने एकांतवास से निकल / दर्द अब एक सामूहिक वक्तव्य है।” जैसा कि ऊपर लिखा है, कवि उस पारलौकिक सत्य का आत्म-संधान करना चाहता है जो सम्पूर्ण विश्व के मुक्ति का सबब बन जाए।

यतीश कुमार की कविताएँ वस्तुतः जीवन से पगी और सांगोपांग जीवन के स्वीकार की कविताएँ हैं। इनमें आप निषेध और अस्वीकार के स्वर विरले ही पाएंगे । अधिकांश कविताओं में जीवन के ठोसपन को अभिव्यक्त करने वाली शब्दावली के साथ कोमल धारणाओं और सूक्ष्म अनुभूतियों को संप्रेषित करने वाली सुकुमारता का अद्भुत सामंजस्य है । प्रेम उनके तो घटित विलक्षण अनुभूति है जो मानव को मानव बनाती है । कविता “हम-तुम-1और “हम-तुम-2 में कवि के भास्वरता (विविडनेस) का साक्षात्कार किया जा सकता है। कुछ ही पंक्तियों में कवि ने एक जीता-जागता, भरा-पूरा पारदर्शी संसार खड़ा कर दिया है- “कुमुदनी के फूल / जोड़ों में ही खिलते हैं / दो दिन के लिए ही सही / खिले थे एक ही गमले में हम-तुम जीवन और उसकी क्षणिकता को इससे बेहतर अभिव्यक्ति देना दूभर है। आगे कवि लिखता है “हम हैं स्टेशन की पटरियाँ / जो शुरुआत में समानांतर / और आगे जब चाहे / क्रासिंग पर गले मिल लेते हैं ।” प्रतीत: विरह और अंततोगत्वा मिलन का यह बेहद रोमांटिक दृश्य बन पड़ा है ; साथ ही कवि के गणितीय ज्ञान और रेलवे अधिकारी होने की तसदीक भी !

 संग्रह की एक और महत्वपूर्ण सीरीज की कविताएँ हैं- पिता पर लिखी कविताएँ। पिता-1, पिता-2, पिता-3, पिता-4 और पिता-5। “पिता मनुष्य की चेतना का सबसे अबूझ पहेलियों में से एक है। “इवान तुर्गनेव के “पिता और पुत्र से लेकर मैक्सिम गोर्की के “माँ का ब्लासोव- अंग्रेजी का एनिग्मेटिक (ENIGMATIC) शब्द शायद इसी के परिभाषा के रूप में ईजाद किया गया था। पिता की जो छवि है- दृढ ,रुक्ष अजेय चट्टान के सदृश-भावना विहीन – भारतीय मध्य वर्गीय / निम्न मध्य वर्गीय परिवारों में- वह कहीं न कहीं पिता को मनुषयेतर  बना देती है। कवि की  एक बेहद सफल और भरोसेमंद कोशिश रही है इस रुक्ष और रूढ़िवादी छवि को तोड़ने की । पिता जो माँ के माध्यम से ही संवाद करते- “पिता के अबोले शब्द को / माँ की आंखे बोलती हैं / और उनके जलते शब्दों को / माँ के शब्द ढक देते हैं।

पांचों कविताएँ बेहद मार्मिक बन पड़ी हैं। वे पिता के पिता बनने से लेकर अंतिम यात्रा को इतनी सफलता और संवेदनशील ढंग से दर्शाती हैं जो अपनी आत्मा संलग्नता, भावात्मक संतुलन और जीवन के प्रति असीम आशावादिता से अद्भुत प्रभाव छोड़ती हैं।

इस काव्य संग्रह से गुजरते वक्त जो  त्वरित अनुभूति आपके अंदर महसूस होती है वह प्रचंड विपुलता । यह यकीन करना मुश्किल है कि यह कवि का प्रथम काव्य संग्रह है । 96 कविताओं का संग्रह निश्चय ही पाठक को आक्रांत करता है। कई बेहतरीन कविताओं पर पाठक तवज्जोह नहीं दे पाता। बेहतर था इसे दो या तीन अलग-अलग संग्रहों  में लाया जाता। यह मेरी व्यक्तिगत राय है।

जोसेफ ब्रॉडस्की ने एक जगह लिखा है “मानवीय अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप होने के नाते कविता न सिर्फ अपनी बात सारतत्व में रखती है, अपितु किसी भी मानवीय अनुभव को संप्रेषित करने का सबसे घनीभूत रूप भी है । कविता वस्तुतः गद्य को शब्द की कीमत पहचानना सिखाती है।”

यतीश कुमार की अधिकांश कविताएं इस पर खरी उतरती हैं।

परिचय :

दीपक मिश्र एक सरकारी उपक्रम में सेवारत हैं। प्रतिष्ठित पत्रिका हंस / पाखी समेत विभिन्न अखबारों में फुटकर रूप से कुछ समीक्षाएं प्रकाशित हुई हैं। वर्तमान में जयपुर (राजस्थान) में रहते हैं। उनसे मोबाइल नंबर 9779902911 पर संपर्क किया जा सकता है।

 

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