यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर लेखिका दिव्या सिंह की समीक्षा
यतीश कुमार जी की संस्मरणात्मक किताब "बोरसी भर आँच अतीत की सैरबीन" का हर पुस्तक प्रेमी की जद में होना आवश्यक है। इसको पढ़ते हुए महसूस हुआ कि इसका पढ़ा जाना जरूरी है, खासकर नयी पीढ़ी के लिए।
इस किताब
में केवल एक वयस्क का अपने अतीत को विश्लेषित करना ही नहीं है वरन समाज को आईना
दिखाना भी है। यह सैरबीन देखते हुए दर्शक पाठक याद रखें कि वे एक सामाजिक, आर्थिक,
भौगोलिक और राजनीतिक समीकरणों का दस्तावेज़ पढ़ रहे हैं। लेखक ने
जिस कुशलता से मानसिक द्वंदों का चित्रण किया है वह विरले ही देखने को मिलती है।
यह किताब इसलिए भी पढ़नी जरूरी है क्योंकि यह मनुष्य की संघर्ष क्षमता को उजागर
करती है।
संतुलित
भाषा, सरल भाव प्रवाह, यकीनन बहुत दिल से लिखी गयी किताब
है। लिखते समय कितनी बार बह निकले होंगे आँसू, कठिन होता है
यादों को टटोल कर लिखना। लेकिन जरूरी था इस किताब का लिखा जाना और पढ़ा जाना। एक
तिहाई तक तो मैं दिदिया की चिंता में रही फिर माँ की फिक्र रह- रह कर सताती रही
लेकिन उसके बाद समझ आया कि बालक को सम्हालने की जरूरत है, सबसे
ज्यादा जरूरत है और बाकी की किताब उसके सम्हलने तक एक सांस में पढ़ ली गयी।
बेहद
मार्मिक और विकट परिस्थितियों को इतने स्नेहिल बाल सुलभ भाव से लिख देना अद्भुत
है। किताब पढ़ते हुए लगता रहा जैसे इस किताब को एक वयस्क और एक बच्चा दोनों मिल कर
लिख रहे हैं। जहाँ एक ओर बच्चा आगे- आगे दौड़ते हुए दिखा रहा है पोखर के रोमांच
उसकी बदमाशियाँ, किउल नदी के पास बसी उसकी कोलाहल से भरी दुनिया। तो वहीं वो वयस्क अपने
जीवन की कठिन दुष्कर परिस्थितियों का विश्लेषणात्मक वर्णन करते चलता है। लेखक को
शुभकामनाएं। शानदार किताब लिखने के लिए बधाई। इस किताब का अन्य भाषाओं में अनुवाद
होना चाहिए।
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