यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर बहुचर्चित लेखक देवेश की टिप्पणी
यह कहानी है एक ऐसे बच्चे की जिसका जीवन घनीभूत पीड़ाओं से घिरा रहा। किताब के प्रारंभ में जिन भावनात्मक घावों का ज़िक्र है, उनको जान लेने के बाद अंत में (और कितने करीब में) वर्णित जानलेवा अनुभव कमतर लगने लगते हैं। करंट और बीमारी से उबरना आसान है लेकिन जीवन की विद्रूपताओं का सामना करके यतीश कुमार बनना दुर्लभ है।
यह एक ऐसा संस्मरण है जो लंबे समय तक चर्चा में रहेगा। अपने सघन अनुभवों और
उनको पेश करने की अद्भुत भाषा शैली के कारण। हर अध्याय का प्रारंभ और अंत
कविता/ग़ज़ल की किसी पंक्ति से किया गया है. बशीर बद्र का ये शेर कितना सटीक है-
‘ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा।।’
‘बोरसी भर आँच’ को पढ़ा जाना चाहिए और निराशा के
क्षण जब-जब जीवन में आएं तब-तब पढ़ा जाना चाहिए। ‘दो बारिशों के बीच कितना बड़ा
हो जाता है आदमी’ - आँसू से यतीश बनने के लिए कितने झंझावात सहता है आदमी... जो सह गया वो बन
गया। यतीश जी को बहुत बधाई इस किताब के लिए।
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