यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ की आशुतोष कुमार ठाकुर द्वारा समीक्षा
यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ की आशुतोष कुमार ठाकुर द्वारा समीक्षा
‘बोरसी भर आँच’: धुंध में उभरती आवाज़ें
‘बोरसी भर आँच’ कोई सामान्य किताब नहीं है। यह एक खिड़की है
उस दुनिया की, जहाँ लेखक के बचपन के
ठिठुरते लम्हें, युवावस्था के संघर्ष
और परिवार के अनकहे किस्से धीरे-धीरे सांस लेते हैं। पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है
जैसे कहीं धुंध के पार से कोई सच्ची, आत्मीय आवाज़ बुला रही हो, एक आवाज़ जो सीधे दिल से जुड़ी हो।
बचपन के नर्म कोनों से:
यह
रचना उस मौन साथी की तरह है जो बिना शब्दों के हमारे भीतर उन जज़्बातों को पहचानता
है। वह जो बिना पूछे समझने की ख्वाहिश रखता है। हर पन्ना, हर लफ्ज़ एक धड़कन बनकर हमारे दिल के सबसे छिपे कोनों तक
पहुँच जाता है। ‘बोरसी भर आँच’ की यह सधी-धीमी आवाज़ हमें हमारी अपनी ज़मीनी
हक़ीक़त से जोड़ती है।वहाँ, जहाँ
साधारण दिखने वाली बातों में जीवन के सबसे मूल्यवान अनुभव चुपचाप संजोए रहती हैं।
कहानी की शुरुआत होती है बचपन से, जहाँ हर गली, हर घर की खुशबू, हर खेल की वो खिलखिलाहट, जैसे पहली बारिश की बूंदों में छिपा कोई अनोखा गीत हो। बचपन की दुनिया में बड़ी-बड़ी बातों की जगह नहीं होती। यहाँ सब कुछ बेहद सरल और सहज होता है। बच्चे अपनी मासूमियत में जादू ढूंढते हैं। सवाल उठाते हैं और अपने छोटे-छोटे अनुभवों से एक बड़ा संसार रचते हैं।
यतीश
कुमार की आत्मकथा ‘बोरसी भर आँच’ में इस बचपन की नर्मी और सादगी को ममत्व के साथ
रचा गया है। लेखक ने इस मासूमियत को इस तरह पेश किया है कि पाठक स्वयं को वहीं
खड़ा अनुभव करता है, जहाँ
मिट्टी की ताजी खुशबू और हल्की धूप की नर्मी एक साथ मिलकर जीवन को रंगीन बनाती
हैं।
बाल
मनोविज्ञान की नजर से देखें तो बचपन के ये कोमल क्षण केवल यादों का आश्रय नहीं
होते,
बल्कि बच्चे के मन में छिपी जटिल भावनाओं और अनुभवों का भी
प्रतिबिंब होते हैं। यहीं से स्मृति की पहली पगडंडी शुरू होती है—वही नर्म, धूल भरे झरोखे, जहाँ बच्चा पहली बार डरता है, हँसता है, खुद
से कुछ छुपाता है और धीरे-धीरे अपने भीतर एक दुनिया बसाने लगता है।कोई देखता नहीं, फिर भी वहीं से उसकी पहचान बनना शुरू हो जाती है, जो उसके व्यक्तित्व के निर्माण और मानसिक विकास की नींव
बनती है।
बचपन
के ये नर्म कोने, जो दिखने
में साधारण लगते हैं, दरअसल
अनगिनत यादों, भावनाओं और सपनों का
घर होते हैं। हर छुपा हुआ रंग, हर
खोया हुआ क्षण, हर हँसी और आंसू अपनी
कहानी कहते हैं। ‘बोरसी भर आँच’ में यही बचपन की जादुई दुनिया जीवंत होती है।जहाँ
हर छोटी-सीबात में एक नई सीख और एक नई कहानी छिपी होती है।जो हमें हमारी जड़ों से
जोड़ती है और जीवन कामर्म समझाती है।
संघर्षों की खामोशी:
फिर
आता है जीवन का वो दौर, जहाँ
धुंध छा जाती है और सब कुछ अस्पष्ट हो जाता है। समझ नहीं आता कि आगे क्या करना है।
यही होता है संघर्ष। संघर्ष कोई बड़ी कहानी नहीं होती, कोई नाटक नहीं। यह तो रोज़मर्रा की जिंदगी की सच्चाई है।
संघर्ष की खामोशी गहरी होती है। इसे कोई जोर-जोर से नहीं सुन पाता, लेकिन जो इस सफर में चलता है, वह इसे महसूस करता है। ये आवाज़ें इतनी धीमी होती हैं कि
सिर्फ वही सुन सकता है जो सचमुच जी रहा होता है।
गिरना, टूटना, फिर
संभलना,
हारना और खुद को फिर से जोड़ना, यही ‘बोरसी भर आँच’ की आत्मकथात्मक यात्रा का मूल है। यतीश
कुमार की कलम से निकली यह किताब संघर्षों की उस खामोशी को बड़ी संवेदनशीलता से
सामने लाती है।जहाँ न कोई दिखावा होता है और न कोई बहाना। यहाँ बस सच्चाई है, और उसी सच्चाई में छिपी उम्मीद की हल्की सी रौशनी, जो अंधेरों में भी रास्ता दिखाती है।
हर
जख्म की अपनी एक कहानी होती है, और
हर कहानी में छुपा होता है एक नया सबब जीने का। ‘बोरसी भर आँच’ हमें यही सिखाती है
कि जीवन के संघर्षों की खामोशी भी एक गहन भाषा है, जिसे समझना और सुनना बहुत ज़रूरी है।
परिवार के उन अनकहे पन्नों से:
परिवार
एक छांव की तरह होता है। जो कभी ठंडी हवा की तरह धीरे-धीरे चलती है और कभी तेज़
धूप की तरह अपनी गर्माहट से चुभती भी है। ‘बोरसी भर आँच’ परिवार के अनकहे पन्नों
की एक नर्म और असाधारण कहानी है। यहाँ माँ की ममता, दीदी का धैर्य, बड़े भाई की समझदारी और स्मिता के प्रेम की छाया में चीकू
धीरे-धीरे अपनी जगह बनाता है। वह एक केंद्र बिंदु है जो सबकी यादों और जज़्बातों
को जोड़ता है।
रिश्तों
की यह जटिलता ही ‘बोरसी भर आँच’ की आत्मा है। यहां प्रेम और कड़वाहट दोनों साथ
चलते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो परिवार के सदस्य एक-दूसरे की कमजोरियों और ताकतों को
छिपाते भी हैं और प्रकट भी करते हैं। कभी कोई शब्दों में कह नहीं पाता, लेकिन हर नज़र, हर एक मुस्कान या खीझ के पीछे गहरा भाव छुपा होता है। यह
अनकहा संवाद ही उन रिश्तों को जीवित रखता है। संघर्ष, बहस, और
समझदारी का मेल इस कृति में इस कदर प्राकृतिक है कि पाठक खुद को उस जटिलता के बीच
कहीं खोया हुआ पाता है।
यह
सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि
सामाजिक और आर्थिक परिवेश की भी कहानी कहती है। जीवन को समझना है, बनाना नहीं। यतीश कुमार ने अपने यथार्थ की सूक्ष्म बूंदें
इस कृति में उकेरी हैं, जो पाठक
के भीतर निरंतरप्रतिध्वनितहोती है।
‘बोरसी भर आँच’ की खूबसूरती इस बात में है कि यह सामान्य-सी
दिखने वाली परतों के पीछे छुपी गहरी मानवता को सामने लाती है।जो अपने भीतर हजारों
जज्बातों का समंदर लिए होती है। यही परिवार की असली ऊष्मा और ठंडक दोनों है, एक ऐसी मिलावट जो जीवन को असली रंग देती है।
भाषा की नर्मी और सादगी:
‘बोरसी भर आँच’ की भाषा बिल्कुल उस पुराने दोस्त की आवाज़ जैसी
है, जो थकान में भी एक ताजगी और उत्साह की सौम्यता लेकर आती है।
शब्द हल्के और सरल हैं, जो बिना
किसी चुभन के सीधे दिल तक पहुँचते हैं। यह रचना नर्म और गहरे भावों वाली भाषा में
बुनी गई है, जो ज़िंदगी के छोटे-छोटे
रंगों को बड़े प्यार से छूती है और पाठक के मन में लंबे समय तक असर छोड़ती है।
इसमें
कहीं कोई दिखावा नहीं, केवल एक
सहज और प्राकृतिक संवाद है, जो बिना
जोर-शोर के अपनी मिठास फैलाता है। पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे लंबी यात्रा के बाद
घर लौटकर खुली खिड़की से आती ताजी हवा को अनुभव कर रहे हों। शांति और सुकून का
एहसास।
हिंदी आत्मकथात्मक लेखन का एक नया आयाम:
आत्मकथा
एक नाजुक डोर की तरह होती है जो लेखक की भीतरी दुनिया को हमारे सामने लाती है। वे
अनुभव,
जो अक्सर शब्दों से परे रह जाते हैं, आत्मकथा उन्हें सच्चाई के साथ सामने रखती है। यह विधा इसलिए
खास होती है क्योंकि इसमें ज़िंदगी की असली खुशबू बसती है — लेखक अपने भीतर के
संघर्ष,
नाज़ुकपन और जिजीविषा को बिना रोक-टोक हमारे सामने रखता
है।और तब हम अनुभव करते हैं कि हर जीवन एक समूचा संसार है, जो अपने साथ समय और समाज की कहानियाँ लिए चलता है।
साहित्य
में आत्मकथाएँ सदियों से हमारे जज़्बातों और सोच का दस्तावेज़ रही हैं। हर आत्मकथा
में कहीं एक परछाई होती है उस युग की, उस संस्कृति की, जिसको समझे बिना व्यक्ति की कहानी अधूरी रहती है। ‘बोरसी भर
आँच’ इसी धारा का एक और प्रामाणिक अध्याय है, जो सादगी और ईमानदारी से बंधा हुआ है। यह किताब एक इंसान की
नहीं,
बल्कि एक युग की, एक समाज की ज़ुबानी भी है, जो लगातार अपना रंग और आकार बदलता रहता है।
अंत में:
यह
किताब हमें सिखाती है कि ज़िंदगी में ठोकरें लगना ज़रूरी हैं। गिरना भी, उठना भी और उठने की जिजीविषा, संघर्षों के बाद की एक नयी सुबह की तरह होती है। इसे पढ़ते
हुए ऐसा नहीं लगता कि हम किसी लेखक की कथा पढ़ रहे हैं, बल्कि जैसे हम अपने ही किसी भूले हुए मौसम से होकर गुजर रहे
हैं। ‘बोरसी भर आँच’ किसी झूठे हौसले या दिखावे की किताब नहीं, बल्कि वह सच्चाई है जो हर दिल को छूती है, चाहे वो हँसे या रोये, चाहे खुश हो या उदास।
यह
किताब अपनेआप में एक यात्रा है, बचपन
की नर्म धूप से लेकर बड़े होने की कठोर छाँव तक। एक किताब जो पढ़ते-पढ़ते आपको
अपने भीतर झांकने पर मजबूर कर दे। यदि आप अपनी आत्मा की किसी आवाज़ को सुनना चाहते
हैं,
जो अनकहे दर्दों के बीच भी मुस्कुराहट खोजती है, तो ‘बोरसी भर आँच’ आपके लिए एक सच्चा साथी होगी।
(आशुतोष कुमार ठाकुर, पेशे से मैनेजमेंट प्रोफेशनल हैं, जो साहित्य और कला पर नियमित लिखते हैं।)
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