लोकप्रिय कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ के कहानी संग्रह ‘वन्या’ पर यतीश कुमार की समीक्षा
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इस किताब की भूमिका पढ़ते समय दो लेखकों , संजीव और राजेंद्र अवस्थी का स्मरण हो आया। दोनों की किताबों पर कविताई हुई है कभी। पहली किताब ‘ जंगल जहाँ शुरू होता है’ और दूसरी किताब ‘ जंगल के फूल’। इन दोनों किताबों में लेखक ने जंगल को जिया है। इसके दर्द को शिद्दत से महसूस किया है और यहाँ मनीषा की कलम से निकलकर वही दर्द अपनी शक्ल बदल कर नार्थ ईस्ट और रेगिस्तान के जंगलों में घूमता फिरता मिल रहा है , रूबरू हो रहा है। ‘ नर्सरी’ कहानी में ‘ शुक्र तारा’ , जो चंद्रमा के बाद रात्रि में आकाश का सबसे चमकीला तारा है , एक रूपक की तरह मिलता है। चाय बाग़ान अपनी कड़वी सच्चाई कह रहा है कि जंगल को चाय बाग़ान खा रहे हैं। यहाँ यह सब देख रहा है गेंद , पर असल में यह गेंद नहीं लेखिका का मन है , जो बेचैन है। उसकी बेचैनी के केंद्र में है चाय बाग़ान का जीवन। गेंद , ऊपर आकाश में , बड़ी गेंद माने चाँद को देखती है और बच्चों की आँखों में बदलते चाँद की तस्वीर को। लगता है गेंद नहीं समय की आँख है , जो एक महल से निकल कर जंगल में उन्मुक्तता को ताके जा रही है। एक मूक द्रष्टा चाय के पूरे बाग़ान के हर कोने का मुआयना कर रहा है , ...