यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर वरिष्ठ पत्रकार-लेखक राजीव सक्सेना की टिप्पणी
एक प्रेरक फ़िल्म की संभावनाओं से लबरेज़ आपबीती है ‘बोरसी भर आँच’
जीवन के नैपथ्य की सपाटबयानी है यतीश कुमार जी की किताब ‘बोरसी भर आँच’। राधाकृष्ण प्रकाशन की सम्भवतः ये पहली ही किताब होगी, जिस पर डेढ़ महीने मात्र में जितना लिखा गया, पाठकों की टिप्पणी, समीक्षा या चर्चा बतौर, उसे अन्य के मद्देनज़र कीर्तिमान बनने के नजदीक कहना ज़्यादती नहीं होगी।
तीन वर्ष के सतत संवाद और तीन महीने के सानिध्य में यतीश कुमार जी के सृजन से अधिक बतौर इंसान उन्हें ‘पढ़ने’ में सफल रहा हूँ। अतीत की तपिश से झुलसने या पथविमुख होने की बजाय कोई सोने की तरह निखरे और 'इंसान' बन जाये इससे बड़ी उपलब्धि और भला क्या। ‘बोरसी भर आँच’ के शीर्षक में प्रयुक्त ‘बोरसी’ से लेकर, किताब के पन्ने-पन्ने, किस्सों, संस्मरणों पर तमाम लोगों की प्रतिक्रियाओं के बाद कुछ लिखना, लगभग दोहराव और शब्दों की जुगाली ही कहलायेगा। फिर भी जरूर लिखना चाहूंगा जल्दी ही किसी राष्ट्रीय अखबार या पत्रिका के लिए।
लिखने से ज्यादा ‘कीड़ा’ सिनेमा का है तो उस दृष्टि से यतीश जी की किताब ही नहीं, पूरा व्यक्तित्व ही एक अच्छी पटकथा की सम्भावना से भरा हुआ लगा। तीन टीवी चैनल्स के लिए एक एपिसोड के दायरे में, पिछले दिनों यतीश कुमार जी की शख्सियत का फिल्मांकन तो मुश्किल रहा ही, इन दिनों संपादन उससे अधिक कठिन साबित हो रहा है। दुविधा और अर्थ संकट की उहापोह में, मेरी संकल्पना सफल आकार ले, इसी बीच आदरणीय देवी प्रसाद जी ने स्वयं आगे बढ़कर ‘बोरसी भर आँच’ मुझे पढ़ने को दी।
कोई गुरेज नहीं कहने में कि एपिसोड में ज्यादा ही देरी से उपजे अवसाद के चलते मेरे सरीखे तकरीबन हर एक संघर्षशील के लिए इसे पढ़ना नई ऊर्जा के संचार से कतई कम नहीं। यध्यपि इसके छपने के दौरान इसमें लिखे गए जीवन के कितने ही सच यतीश जी मेरे सवालों के जवाब में केमरे में रिकॉर्ड करवा चुके थे।
इस अनन्त के अचिर जाल में अभिनव
कौन, कौन प्राचीन
मैं हूँ, तेरी स्मृति है,
और विरह - रजनी है, सीमा - हीन!
संस्मरण विधा के पितामह अज्ञेय
जी की इन पंक्तियों से प्रारम्भ कर, अपनी दीदी को समर्पित यतीश जी की किताब की
अनगिन खूबियों में टैगोर और फ़िराक़ गोरखपुरी से लेकर जॉन एलिया, बृजेन्द्र त्रिपाठी, आलोक धन्वा, वीरेन डंगवाल,उदय प्रकाश, इम्मा
हादिया, विष्णु खरे,ऋतुराज, राजेंद्र धोड़पकर जैसे रचनाकारों की उन चयनित पक्तियों का उल्लेख कर हर एक
नए संस्मरण की शुरुआत करना है जो कहीं न कहीं स्मृतियों से जुड़ी हैं।
हर नए खंड से पहले पूरे पन्ने पर विनय अंबर सरीखे बेहतरीन कलाकार के बारीक़ चित्रांकन ने किताब को वाकई एक अलग कलेवर से जोड़ा है। विधा विशेष की पुस्तकों में ये दोनों ही प्रयोग..कथ्य की एकरसता को तोड़ने की नई इबारत कहे जायेंगे। कवर पर स्वयं यतीश जी का किसी मशहूर आर्टिस्ट द्वारा बनाया गया पोर्ट्रेट, भीतर के पन्नों पर ज़ज़्बातों के साथ बहने का आमंत्रण पाठकों को देता प्रतीत हो रहा है।
एक संस्मरण में किऊल नदी के तट पर जयनगर की लालपहाड़ी से निकली सुरंग में परिजनों के साथ भ्रमण और उसमे डाकुओँ के छुपे होने से जुड़े किस्से दिलचस्प हैं .परम्परा से हटते हुए यतीश जी ने एक पन्ने पर पुरातत्व विभाग द्वारा उस सुरंग को कब्जे में लेकर खुदाई के प्रयास अब तक पूरे नहीं होने का ज़िक्र किया है। छोटे पर्दे के लिए यतीश जी के सृजन पर डॉक्युमेंट्री का प्रयास किया है, तो जाहिर है ‘बोरसी भर आँच’ में भी एक उम्दा वेब सीरीज की प्रबल सम्भावना देखने से बच नहीं सकता। उनके सम्बन्धों के असीमित आयाम यक़ीनन किसी बड़े फिल्मकार के लिए उन्हें प्रेरित कर सकते हैं, तथापि
लेखन से विमुख हो तीन दशक की
अपनी सिनेदृष्टि के चलते दावे के साथ कहना चाहूंगा कि इस तरह की आपबीती, किताब के चंद
पाठकों तक सीमित नहीं रहकर सिनेमा विधा के माध्यम से लाखों आम दर्शकों तक जरूर
पहुंचना चाहिए।
खास कर, संघर्ष की पराकाष्ठा में अपराध की तरफ बढ़ने वाले किशोरों और युवाओं के लिए इस किताब का उपयोग मोटिवेशनल इवेंट्स में किये जाने की पैरवी भी मैं करूँगा। यतीश कुमार जी की इस पुस्तक पर वरिष्ठ साहित्यसेवियों ममता कालिया जी, देवीप्रसाद मिश्र जी, प्रभात रंजन जी, सैयद इरफ़ान जी और मशहूर कार्टूनिस्ट इरफ़ान जी ने क्या कुछ कहा, यतीश जी सम्बन्धी मेरे कार्यक्रम सरोकार के खास एपिसोडस में आप सब एपिक और डिस्कवरी चैनल्स पर जल्दी ही देख पायेंगे।
यतीश जी ने अपने अतीत के कड़वे अनुभवों से इंसानी ज़ज़्बात, सौगात बतौर ग्रहण किये, ज़रूरतमंद की हरमुमकिन मदद उनकी शख्सियत का एक कोमल भाव बन चुका है, इसे ताउम्र क़ायम रखें। साहित्य और प्रशासन दोनों का बड़ा सा आसमान उनके लिए बाहें फैलाये खड़ा हुआ है। अनंत शुभकामनायें उनके लिए।
Comments
Post a Comment