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यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर डॉ. पूजा पाठक की टिप्पणी

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  जिद्द और साहस का कोम्बो चीकू: ‘ बोरसी भर आँच चीकू का संघर्ष उन बच्चों का संघर्ष है जो गरीबी में भी उँची उड़ान भरने का सपना देखते हैं , अन्तर बस इतना है कि चीकू का जिद्दी और साहसी होना उसके परिवेश की देन है। अस्पताल के आस-पास होने से वह जीवन और मृत्यु को बहुत करीब से देख रहा था। यही वजह है कि वह सामान्य बच्चों से अधिक साहसी बन गया।जिद्द तो उसके भीतर पहले से स्थाई गुण की तरह मौजूद था , उसपर साहसी होना उसके व्यक्तित्व को और अधिक मजबूत बनाता गया। परिणाम यह हुआ कि चीकू प्रतिकूल परिस्थितियों से उबर कर आज सफल हो सका। ‘ बोरसी भर आँच ’ उसी चीकू की कहानी है जिसने रास्तें में बहुत ठोकर खाए पर अपनी मंजिला तक पहुँच कर ही दम लिया। समाज की राजनीतिक और आर्थिक परिस्थिति ने भी उसके पाँव जकड़े रखने की बहुत कोशिश की पर वह अपने साहस से उन बन्धनों को काटता गया। चीकू के लिए उसकी माँ , बहन और भाई उर्जा का स्त्रोत थे उनके बारे में उसने लिखा कि "मेरी जिन्दगी की सर्किट में माँ चरण स्त्रोत ( पॉ जिटिव) तार की तरह रही तो दीदी पृथ्वी यानी अर्थिंग वायर की तरह लेकिन आज जिस शख्स के बारे में लिखने जा रहा हूँ व...

यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर कलाविद सुशील कांति की टिप्पणी

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  एक किताब जो उदास करती है , हताश करती है , हर दो-चार पृष्ठों के बाद लंबी सांस खींचकर आंख बंद कर लेने को मजबूर करती है। क्षमा करें , यह मेरा बिलकुल निजी अनुभव और विचार है। ऐसा हर व्यक्ति , जिसे इस संस्मरण में अपना संघर्ष और बचपन दिखता हो और जीवन में अब भी सफल न हो , उसे हताश करेगी। इस संस्मरण के कई हिस्से , ऐसा लगता है जैसे मेरा जीवन हो। समयकाल वही है जब मैं भी अपने गांव बेनीपुर (दरभंगा जिला) में बेहद अभावों का जीवन जीते हुए पढ़ाई कर रहा था। मैं कक्षा पांचवीं में था तब मेरे पिताजी गुजर गए। मां साधारण पेंशन पर परिवार की गाड़ी खींच रही थी। बहरहाल , अपनी कहानी नहीं , ' बोरसी भर आँच ' की बात हो। उदय प्रकाश ने ठीक ही लिखा है इस पुस्तक के बारे में ' पूरी उम्मीद है समकालीन रचनात्मक परिदृश्य में ' बोरसी भर आंच ' अपनी खास जगह बनाएगी ' । बात सच भी है। मैंने कई लोगों से इस पुस्तक की चर्चा की , उनमें से कई इसे पढ़ चुके हैं , कई पढ़ना चाहते हैं , एक तो हमारे साथ साथ पढ़ भी रहे थे। मेरे साथ साथ उनकी राय भी यही थी कि गजब की भाषा है इस पुस्तक की। भाषाई स्तर पर भी कहीं ऊब ...

यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर लेखक डॉ. प्रवीण कुमार झा की टिप्पणी

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  मानव कौल ने कहा कि जब एक नॉन-फिक्शन लिख दिया जाता है , वह फिक्शन हो जाता है। उनका अर्थ संभवतः डायरी लेखन या संस्मरणों के लिए था , जो भले यथार्थ हों , लेकिन व्यक्त करने के बाद वह गल्प बन जाते हैं। चाहे वह कितने भी सच्चे हों , एक पाठक उसे रिपोर्ताज की तरह नहीं , कथा की तरह पढ़ेगा (या पढ़ना चाहेगा)। हुआ यूँ कि मुझे मालूम पड़ा कि लेखक यतीश कुमार ने एक संस्मरण लिखा है , और वह लोकप्रिय हो रहा है। मैंने किंडल पर उनके नाम से किताबें ढूँढी। दो शीर्षक दिखे , और दोनों ही संस्मरण हो सकते थे। ‘अंतस की खुरचन’ और ‘बोरसी भर आँच’। यूँ तो यह सोशल मीडिया युग है , और मैं बड़े आसानी से लेखक से पूछ लेता , लेकिन मैंने अक्कड़-बक्कड़ करते हुए ‘अंतस की खुरचन’ किंडल पर डाल ली कि यह खुरचन ही संस्मरण होगी। लेकिन , यह कविता-संग्रह निकली! ‘बोरसी भर आँच’ संस्मरण थी। इस संस्मरण में लेखक ने अपने बचपन की नॉस्टेल्जिया को उकेरा है। जो अस्सी के दशक में बिहार में बड़े हो रहे थे , वह इस पुस्तक में कई समानांतर देख सकते हैं। जैसे मुहल्ले में सिर्फ एक टेलीविजन होना , ट्रेन में बेटिकट घूमना और चेन पुलिंग , टेपरिकार्डर...

यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर लेखिका लकी राजीव की टिप्पणी

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“ यादों के समय दृश्य बार-बार फॉरवार्ड रिवर्स होने लगते हैं और बहुत तेज़ी से भीतर कहीं भंवर सी उमेठ उठाती है और वमन की तरह कुछ पंक्तियां कागज पर पसर जाती हैं , तब जाकर चित्त को थोड़ा सा आराम थोड़ा सा सुकून मिलता है। यात्रा की ऐसी मुक्ति के लिए ही संस्मरण लिखे जाते हैं। ” ‘ बोरसी भर आँच ’ लिखने का कारण लेखक इन पंक्तियों में बता जाते हैं। लेखक कौन है , एक छोटा बच्चा है , जो अपने चश्मे से एक दुनिया को देख चुका है , फिर वही चश्मा उतारकर पाठक को थमा देता है , लो देखो मेरी दुनिया! उस दुनिया को देखने के लिए हम स्क्रीन पर नज़रें जमा देते हैं। वहां अस्पताल है , अस्पताल में घर है…या घर है , घर में अस्पताल है। माँ नर्स है या नर्स माँ है और दीदी , दीदी छाँव‌ है या छाँव का नाम दिदिया है। जब जब भाई बहन साथ आकर मेरे सामने बैठे , मेरे लिए पढ़ना मुश्किल हुआ। मैं बार-बार चश्मा उतारकर आंसू पोंछती रही। हालांकि चश्मा और भी जगह उतारना पड़ा , जिसके बारे में बताती हूँ। छोटे छोटे बच्चे हैं , अस्पताल जैसे घर की अव्यवस्था में पल रहे हैं। चाय पकौड़े की सप्लाई में बचपन धुआं हो रहा है , खून देखने की आदत हो चुकी है...

यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ की आशुतोष कुमार ठाकुर द्वारा समीक्षा

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  यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ की आशुतोष कुमार ठाकुर द्वारा समीक्षा ‘बोरसी भर आँच’: धुंध में उभरती आवाज़ें ‘ बोरसी भर आँच’ कोई सामान्य किताब नहीं है। यह एक खिड़की है उस दुनिया की , जहाँ लेखक के बचपन के ठिठुरते लम्हें , युवावस्था के संघर्ष और परिवार के अनकहे किस्से धीरे-धीरे सांस लेते हैं। पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे कहीं धुंध के पार से कोई सच्ची , आत्मीय आवाज़ बुला रही हो , एक आवाज़ जो सीधे दिल से जुड़ी हो।  बचपन के नर्म कोनों से : यह रचना उस मौन साथी की तरह है जो बिना शब्दों के हमारे भीतर उन जज़्बातों को पहचानता है। वह जो बिना पूछे समझने की ख्वाहिश रखता है। हर पन्ना , हर लफ्ज़ एक धड़कन बनकर हमारे दिल के सबसे छिपे कोनों तक पहुँच जाता है। ‘बोरसी भर आँच’ की यह सधी-धीमी आवाज़ हमें हमारी अपनी ज़मीनी हक़ीक़त से जोड़ती है।वहाँ , जहाँ साधारण दिखने वाली बातों में जीवन के सबसे मूल्यवान अनुभव चुपचाप संजोए रहती हैं। कहानी की शुरुआत होती है बचपन से , जहाँ हर गली , हर घर की खुशबू , हर खेल की वो खिलखिलाहट , जैसे पहली बारिश की बूंदों में छिपा कोई अनोखा गीत हो। बच...

यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर जयनारायण प्रसाद की टिप्पणी

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यतीश कुमार के संस्मरण संग्रह ‘बोरसी भर आँच’ पर जयनारायण प्रसाद की टिप्पणी अच्छा संस्मरण वह है , जो आपको भीतर तक उद्वेलित करे । इस मायने में युवा लेखक यतीश कुमार की किताब ‘ बोरसी भर आँच : अतीत का सैरबीन ’ वाकई लाजवाब है। इस पुस्तक का हर चैप्टर जादुई है। दिल को तसल्ली होती है कि हमारे आसपास ऐसा शख्स भी है , जो बहुत तल्लीन होकर लेखन कर रहा है। इस संस्मरणात्मक पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि राधाकृष्ण पेपरबैक्स में ‘ बोरसी भर आँच ’ का पहला संस्करण फरवरी , 2024 में आया और तीसरा संस्करण मई , 2024 में। अब तो ‘ बोरसी भर आँच ’ का चौथा संस्करण भी आ चुका है। 21 अगस्त , 1976 को बिहार के मुंगेर में जन्मे यतीश कुमार ने पिछले चंद सालों में यात्रा-वृत्तांत से लेकर कविता , कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक विशिष्ट शैली के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। पर यतीश कुमार की ‘ बोरसी भर आँच ’ दिल और दिमाग दोनों को भीतर तक स्पर्श करती है और आखिर में ‘ वाह ’ निकल ही जाता है। ‘ अस्पताल तक जाती नदी ’ से यह संस्मरण शुरू होता है और जैसे-जैसे इसके पृष्ठ पलटते हैं कवि आलोक धन्वा के शब्दों में यतीश कु...

वरिष्ठ चित्रकार-कवि वाज़दा ख़ान के कविता संग्रह ‘खड़िया’ पर यतीश कुमार की समीक्षा

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एक चित्र हजारों शब्द को बयां करता है और भावनाओं को प्रस्तुत करता है। किसी का हाथ साहित्य और कला दोनों ही विधाओं में बराबर सधा हो तो इसे विरल संयोग ही कहा जाएगा। कवि-चित्रकार वाज़दा को पढ़ते हुए ऐसा बार-बार लगता है जैसे रंगों से एक लंबी बात-चीत का फ़लसफ़ा टुकड़ों में दर्ज है। रंगों का दर्शन बोध , उसकी व्यापकता और आपकी जिंदगी में उसकी अहमियत सब कविता में रची-बसी मिलती है। स्याह अंधेरा को रंगीन स्याही में घोल वह कविता में उतारती हैं- अंधेरे का अर्थ , लाल भी हो सकता है जो हमारी देह की , अंधेरी शिराओं में बहता है बरतते हैं उसे जब हम उजाले में तब सही सही पहचान पाते हैं सिलती ख़्वाहिशों के लिए चिंतित कवि , मन के सुरंग में झांकती हैं , उन्मुक्त आकाश में उड़ने को कहती हैं और क़ैद संवेदनाओं को छू कर आजाद कर देना चाहती है। वह कविताओं के ज़रिए उन कोटरों को खोज रही हैं जहां मन का कबूतर बेचैन चुप्पी ओढ़े लुढ़का पड़ा है। वाज़दा बेचैनियों को चैन देने और उन्हें आकाश देने की बात करती हैं। ‘ खड़िया’ शीर्षक कविता की ये महज पाँच पंक्तियों कितनी व्यापकता समेटे है- इक लम्बी काली रात इक सु...